सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन
किसान भाई खेत में उचित नमी देखकर ही तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई शुरू करें
नई दिल्ली। बारिश में देरी के चलते और प्रतिकूल मौसम के कारण तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई में भारी गिरावट के आसार बताए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि सोयाबीन, अरहर और मूंग की फसल की बुवाई में रिकॉर्ड गिरावट आ सकती है।
खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई इस साल काफी पिछड़ रही है। तिलहन की फसलों में मुख्यतः सोयाबीन की बुवाई में पिछले साल के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर 77.74 फीसदी कमी आ सकती है।
वहीं अरहर की बुवाई में 54.87 फीसदी और मूंग की फसल बुवाई में 34.08 फीसदी की कमी आने की संभावना है। उधर बुवाई पिछड़ने के कारण कपास की फसल की बुवाई में भी 47.72 फीसदी की कमी आ सकती है। हालांकि अभी भी किसान बारिश के बाद अच्छे माहौल का इंतजार कर रहे हैं।
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तिलहन के फसलों के लिए संजीवनी है बारिश
- इन दिनों तिलहन की फसलों के लिए बारिश संजीवनी के समान है। जून के अंत तक 80 मिमी बारिश वाले क्षेत्र में सोयाबीन और कपास की बुवाई शुरू हो सकती है। जबकि दलहन की बुवाई में अभी एक सप्ताह का समय शेष है।ये भी पढ़ें: मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें
दलहन की लेट वैरायटी के बारे में चने की लेट वैरायटी तो खोजी जा चुकी है। मसूर की लेट वैरायटी के बारे में भी शुरुआती जानकारी मिल रही है । अभी तक इन वैरायटियों के बारे में उत्साहजनक नतीजे आने बाकी है। फिर भी अनुसंधान संस्थानों ने इन वैरायटियों के बारे में अच्छी-अच्छी बातें बतायीं हैं। किसान भाइयों की उम्मीदों पर यदि ये बातें खरी उतरतीं हैं तो खेती के लिए यह अच्छी बात होगी।
कृषि वैज्ञानिकों ने दस साल की कड़ी मशक्कत के बाद चने की एक ऐसी किस्म खोजी है जिसकी बुवाई दिसम्बर माह में की जा सकती है। इस किस्म से अच्छी फसल भी ली जा सकती है तथा इसमें कीट का असर भी नहीं होता है। इस वैरायटी की फसल में एक या दो पानी की जरूरत होती है और एक वैरायटी तो ऐसी है कि यदि आपने धान के बाद चने की फसल ले रहे हैं तो आपको एक बार भी पानी की आवश्यकता नहीं पड़ने वाली। इन लेट वैरायटियों की खास बात यह भी है कि आप चने की फसल की अपेक्षा ये नई वैरायटियों की फसलें फरवरी मार्च की गर्मी को आसानी से सहन कर सकतीं हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार इन लेट वैरायटी की फसल का उत्पादन भी 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होंगा।
मसूर की लेट फसल की एकमात्र वैरायटी का पता चला है। इस वैरायटी का राम राजेन्द्र मसूर 1 बताया गया है। इस मसूर को 2352 नाम से भी पहचाना जाता है। इस वैरायटी को 1996 में स्वीकृति मिल चुकी है। इस वैरायटी को गामा किरणों (100 GY) के साथ विकिरण द्वारा विकसित किया गया है। इस नयी किस्म का मुख्य गुण कम तापमान को सहन करना और जल्दी पकना है। इसलिये इस वैरायटी को लेट बुआई में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका लैटिन नाम लेन्स कालिनारिस मेडिक है।